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लेखनी कहानी -02-Aug-2023 ब्लैक रोज

भाग 9  वॉकहर्ड अस्पताल में हुई घटना के वीडियो सोशल मीडिया में घूमने लगे । किसी वीडियो में उपद्रवी मरीजों की पिटाई करते दिख रहे थे तो किसी वीडियो में दंगाई डॉक्टर और नर्सों के साथ बदसलूकी करते हुए दिखाई दे रहे थे । एक वीडियो में तो एक नर्स को आठ दस दंगाइयों ने घेर लिया था । देखते ही देखते उन दंगाइयों ने उस नर्स के सारे कपड़े फाड़ दिये और उसे बिल्कुल निर्वस्त्र कर दिया । उसके पश्चात सात आठ उपद्रवी उस निर्वस्त्र नर्स को अपने हाथों पर उठाते हुए एक ओर चले गये । वीडियो यहीं तक था । शायद वह किसी हॉल का वीडियो था जिसमें सीसीटीवी लगा हुआ था जिसे बाद में दंगाइयों ने फोड़ दिया था । उसके बाद उस नर्स का क्या हुआ, पता नहीं । जब दंगा थमा तो उस नर्स की नंगी लाश एक गैलरी में पड़ी पाई गई । उसके साथ दंगाइयों ने गैंगरेप किया था और उसके गुप्तांग में एक चाकू घुसेड़ दिया था । उस लाश को देखकर रूह कांप उठी थी लोगों की । इतना नोंचा गया था उसे । वीडियो में दंगाई अपने कपड़ों से पहचान में आ रहे थे ।

उन वीडियो को देख देखकर दूसरे समाज में हलचल होने लगी । लोग सड़कों पर इकठ्ठे होने लगे । धार्मिक नारे लगने लगे तो आस पडोस के लोग भी अपने अपने घरों से निकलकर बाहर सड़क पर आ गये । लोगों में आक्रोश बढता गया । पास ही एक बस्ती थी जिसमें दंगाइयों के जैसे कपड़े पहनने वाले लोग रहते थे । भीड़ उधर बढ़ चली और बस्ती के बाहर सड़क पर नारेबाजी करने लगी । बस्ती के लोग शायद इसके लिए पहले से ही तैयार थे । उन्होंने अपने अपने घरों की छतों पर ईंट , पत्थर , पैट्रोल बम रख रखे थे । जैसे ही भीड़ बस्ती की ओर मुड़ी , उस पर छतों से ईंट, पैट्रोल बम और पत्थरों से हमला बोल दिया गया । भीड़ को इस हमले का अंदेशा नहीं था और उनके पास न कोई लाठी थी और न ही कोई हथियार थे इसलिए वे इस अप्रत्याशित हमले से घबराकर ताबड़ तोड़ भागने लगे । बस्ती वालों ने उन पर जमकर पथराव किया । उस पथराव में चार लोग मारे गये और बीस पच्चीस लोग घायल हो गये ।

इतने में पुलिस आ गई । बस्ती के लोगों ने पुलिस पर भी पथराव करना शुरू कर दिया । पुलिस ने पहले चेतावनी देने के लिए हवाई फायर किये लेकिन जब पथराव नहीं रुका तो पुलिस ने गोली मारनी शुरू कर दी । गोलीबारी को देखकर भीड़ अपने अपने घरों में छुप गई । पुलिस ने तलाशी अभियान प्रारंभ कर दिया और एक एक घर की तलाशी लेने लगी । उन घरों से तलवार, छुरे , रिवॉल्वर, बंदूकें और ए के 47 राइफल भी बरामद हुए । पुलिस लोगों को गिरफ्तार कर थाने ले गई ।

पूरा शहर दंगों की चपेट में आ गया था । पूरे शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया । दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दे दिए गये थे । अर्धसैनिक बलों की तैनाती कर दी गई । सेना भी बुला ली गई । रात भर बूटों की ठक ठक सुनाई देती रही । पूरा शहर एक छावनी बनकर रह गया । चप्पे चप्पे पर पुलिस, अर्धसैनिक बल और सेना के जवान तैनात थे । पुलिस और सेना की गाड़ियों और सायरनों की आवाज के शोर में पूरी मुम्बई डूब गई । लोग न्यूज चैनल देखकर माहौल की जानकारी लेते रहे । पूरे शहर का इंटरनेट बंद कर दिया गया । इससे सोशल मीडिया पर भड़काऊ पोस्ट डालना और देखना बंद हो गया । यदि ऐसा नहीं किया जाता तो पता नहीं क्या हो जाता ?

न्यूज चैनल दो तरह की खबरें दिखा रहे थे । एक तो वे चैनल थे जो उपद्रवियों को मासूम , हेडमास्टर का बेटा , कॉलेज का टॉपर छात्र, डॉक्टर, देश का होनहार युवा और इंस्पेक्टर रोहन को हत्यारा , दंगा भड़काने का आरोपी और वर्दी वाला गुंडा बता रहे थे । दरअसल जब रोहन ने अपने और अपने सिपाहियों के बचाव में गोलियां चलाईं थीं तो उपदर्वियों में से किसी ने जानबूझकर उसका वीडियो बना लिया और उसे वायरल कर दिया । यह दंगाइयों ने साजिशन किया जिससे दंगों का दोष रोहन पर डाला जा सके । वह वीडियो सलीम के द्वारा पोषित मीडिया को जानबूझकर भेजा गया जिससे रोहन को दंगाभड़काने का एरोपी बताया जा सके । वह मीडिया लगातार उस वीडियो को चला रहा था और पुलिस, सरकार को हत्यारी, दंगाई सिद्ध कर रहा था ।

एक कुख्यात पत्तलकार "बकैत कुमार" जिसके भाई पर एक बच्ची के दुष्कर्म का आरोप लगा था और जिसे इस बकैत कुमार ने एक प्रसिद्ध राजनीतिक दल की सहायता से सुप्रीम कोर्ट से बरी करा लिया था । यह बकैत कुमार एक खानदानी दल के पक्ष में ही अपनी रिपोर्ट तैयार करता था और इसी बकैत कुमार ने एक नया टर्म "गोदी मीडिया" गढ़ा था क्योंकि यह बकैत कुमार एक खानदानी दल की गोदी में बैठकर अपनी "मालकिन" के लिए पत्तलकारिता करता आया था ।

आजकल एक बड़ा अच्छा ट्रेंड चल रहा है कि चोर , भ्रष्ट लोग पुलिस और जांच ऐजेन्सियों को पहले ही भ्रष्ट घोषित कर देते हैं । उन्हें सरकार के पिठ्ठू कह देते हैं । ऐसा करने से वे खुद कट्टर ईमानदार बन जाते हैं । ऐसे ही दलाल पत्रकारों ने "गोदी मीडिया" शब्द गढ़ लिया । वे राष्ट्रवादी पत्रकारों को "गोदी मिडिया" कहकर उनका उपहास उड़ाने लगे । इस प्रकार मीडिया दो भागों में विभक्त हो गया ।

राष्ट्रवादी चैनलों ने घटना का सिलसिलेवार ब्यौरा देना शुरू कर दिया और दंगों की मौके पर ली गई रिपोर्ट प्रसारित करना शुरू कर दिया । पर ऐसे राष्ट्रवादी चैनल गिने चुने थे जबकि बकैत कुमार जैसे पत्तलकारों के चैनल भरे पड़े थे । इसलिए जो लोग बरसों से प्रोपेगैंडा करते आये हैं , अफजल गुरू को एक होनहार डॉक्टर, अजमल कसाब को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कार्यकर्ता घोषित करते आये हैं, उन्होने अपना ऐजेंडा चलाना शुरू कर दिया । इस प्रकार मीडिया में गजब का एजेंडा चलने लगा ।

जैसे तैसे रात बीती । लोग अपने अपने घरों में दुबके पड़े थे । लेकिन मीडिया के लोग अपनी अपनी ड्यूटी पूरी कर रहे थे । कुछ चैनल अपनी टी आर पी बढाने के लिए इस मौके का भी उपयोग कर रहे थे । झूठ को सच और सच को झूठ सिद्ध करके अपनी कमाई कर रहे थे । दंगों की रिपोर्टिंग से भी कमाई हो सकती है , मीडिया इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है । एक पत्तलकार है "झूठदेसाई" । उसने गजब का ड्रामा रचा । वैसे ड्रामा रचना उसका पैशन है । वह सन 2002 से "आज तक" ड्रामा रचता ही आया है और केवल झूठ परोसता आया है । लेकिन आज तक उसका बाल भी बांका नहीं हुआ क्योंकि वह "मालकिन" की गुलामी करता था । "मालकिन" बहुत रसूखदार है । सत्ता बदल गई तो क्या हुआ सिस्टम तो अभी भी मालकिन का ही चल रहा है । इसलिए झूठदेसाई की खोटी चवन्नी धड़ल्ले से चल रही है ।

इस बार भी झूठदेसाई ने सुपर ड्रामा रचा । हुआ यूं कि एक दंगाई अपने हाथ में राइफल लेकर एक जीप में सवार होकर पुलिस पर हमला करने निकला । उसने इतनी तेज स्पीड में गाड़ी मोड़ी कि वह पलट गई और वह दंगाई उसी गाड़ी के नीचे दबकर मर गया । जैसे ही इस घटना की जानकारी झूठदेसाई को मिली , वह ड्रामा करने मौके पर आ गया । पूरे शहर में यद्यपि कर्फ्यू लगा था लेकिन कुछ मालकिन के वफादार पुलिस अधिकरी और कुछ झूठदेसाई के साथ दारू पार्टी करने वाले पुलिस अधिकारियों ने झूठदेसाई को मौके पर जाने दिया । झूठदेसाई ने क्या झूठ गढा कि वह दंगाई गाड़ी पलटने से नहीं अपितु पुलिस की गोली से मरा है । चूंकि झूठदेसाई नामी गिरामी पत्तलकार है इसलिए उसकी रिपोर्ट पर सभी "खैराती" चैनलों पर यह खबर चलने लगी । लेकिन पुलिस के अधिकारियों ने उस दुर्घटना का सीसीटीवी फुटेज सार्वजनिक करके झूठदेसाई के झूठ की हवा निकाल दी । इस झूठी रिपोर्टिंग पर पुलिस ने झूठदेसाई के खिलाफ एक एफ आई दर्ज कर ली ।

सुबह का समय होने को आया था । इस दंगे की रिपोर्ट बकैत कुमार ने अपनी स्टाइल में की थी । बकैत कुमार का पाकिस्तान प्रेमी समुदाय जबरा फैन है । उसके लाखों फोलोवर्स हैं क्योंकि उसकी पत्तलकारिता में झूठ , फरेब, मक्कारी, धूर्तता, लफ्फाजी, बकवास और चाटुकारिता सब कुछ है । वह चीन और पाकिस्तान से पैसे लेकर झूठी खबरें चलाता है । उसने इन दंगों में "भगवा" आतंक ढूंढ लिया और पुलिस के शहीद जवानों को "भगवा गुंडे" कहकर संबोधित करने लगा । लोगों में बकैत कुमार के प्रति बहुत रोष व्याप्त हो गया था किन्तु एक समुदाय इससे बड़ा खुश था । उनका कार्य एक "काफिर" कर रहा था ।

सुबह के लगभग पांच बजे का समय था । गरीबों के नाम पर पत्तलकारिता करने वाला बकैत कुमार अपने घर जाने के लिए अपनी 50 लाख की कार में बैठ गया । गाड़ी उसका ड्राइवर चलाने लगा । एक चौराहे पर पुलिस ने उसकी कार रोक ली । उसने घमंड से कहा कि वह एक पत्रकार है और पत्रकारों पर कर्फ्यू लागू नहीं होता है । यह कहकर उसकी गाड़ी आगे बढ़ गई । हर चौराहे पर पुलिस खड़ी थी इसलिए हर चौराहे पर उसकी तलाशी हो रही थी । बकैत कुमार इससे झल्ला गया । उसकी तलाशी लेने की हिम्मत किसमें हो सकती है ? उसने सुबह 5 बजे डीजीपी को फोन लगा दिया । बकैत कुमार कभी भी किसी को फोन कर सकता है । आखिर वह एक बड़ा पत्तलकार जो है । डीजीपी ने फोन नहीं उठाया । उठाते भी कैसे बेचारे ? तीन बजे तो सोये थे । बकैत कुमार ने मन ही मन डीजीपी पर एक "शो" कर उन्हें देख लेने का निश्चय कर लिया ।

अगले चौराहे पर पुलिस की गाड़ी ने उसकी कार फिर रोक ली । इस बार बकैत कुमार ने पुलिस के अधिकारियों को मां बहन की गाली निकालनी शुरू कर दी । अचानक दो गोलियों की आवाज आई और बकैत कुमार और उसका ड्राइवर दोनों सीधे जहन्नुम पहुंच गये । जब तक भीड़ इकठ्ठी हुई और कार में देखा तो वहां पर एक "ब्लैक रोज" पड़ा हुआ था ।

श्री हरि  22.8.23

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